कार्यशाला शिक्षक एवं विद्यार्थी दोनों के लिए शैक्षिक उन्नयन का सशक्त माध्यम है| इसी पुनीत भावना के आलोक में 27 जून से 30 जून,2018 तक चार दिवसीय हिंदी भाषा शिक्षक कार्यशाला का प्रथम आयोजन किया गया | हिंदी भाषा विषय की व्यवहारिक आवश्यकता एवं अनुभव पर पूरे शिक्षण समय को पंद्रह सत्रों में समायोजित किया गया| इस कार्यशाला में हरियाणा प्रान्त के 7 संकुलों के 27 विद्यालयों में से 13 आचार्यों व 44 दीदी ने पुरे मनोयोग से सहभागिता की| विषय शिक्षण की महत्ता को ध्यान में रखते हुए विषय-उपविषय विशेषज्ञों के अनुभवी आचार्यों द्वारा विषय का भली भांति प्रतिपादन किया गया, आठ विशेषज्ञों द्वारा भाषा शिक्षण के विभिन्न पहलुओं पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डालते हुए विषय को हृदयमय करने का सफल प्रयास किया गया| मुख्यत: प्रतिपादित विषय: सुलेख,श्रुतलेख शुद्धवर्तनी,उचारण व्याकरण बोध, शब्दकोश ज्ञान, लेखन कौशल, भाषा विकास एवं व्यक्तिगत महान साहित्यकारों की जीवनी एवं मानक रूप, मौखिक अभिव्यक्ति क्रिया आधारित शिक्षण प्रक्रिया, गृह कार्य व प्रश्न निर्माण आदि रहे| विशेषज्ञों में डॉ अशोक बत्रा, डॉ. विजय दत्त शर्मा, श्रीमान आशुतोष भटनागर, माननीय श्री रवि कुमार, श्री राम कुमार एवं श्री सुभाष शर्मा नाम उल्लेखनीय है| रात्रि कालीन सत्र में ‘सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला’ का जीवन चरित्र चलचित्र के माध्यम से दिखाया गया| चलचित्र शिक्षार्थियों के लिए रोचक रहा|
संक्षेप में यह एक भाषा शिक्षण का भागीरथ प्रयास था, उपस्थित प्रतिभागियों द्वारा जिज्ञासा एवं दैनिक कठिनाई से अभिव्यक्ति ने इस कार्याशला को नया रूप दिया है| सांय भाषा अध्यापकों को सिखने का नया आकाश ही नहीं तो भाषा शिक्षक होने का गौरव भी प्राप्त हुआ है|
समापन सत्र में श्री रवि कुमार जी ने बताया कि पानी अंतिम बिंदु तक जाना चाहिए अर्थात कार्यशाला में जो भी हमने सीखा है वह कक्षा कक्ष शिक्षण में उपयोग में आना चाहिए ताकि बालकों को भाषा शिक्षण अच्छा हो सके एवं माननीय सुरेंदर अत्री जी का उद्बोधन आचार्यों के लिए सारगर्भित व भाव भरा क्षण रहा उन्होंने ने कहा कि हम विषय आचार्य के साथ मार्गदर्शक भी है| मार्गदर्शक है ऐसा हमारे व्यवहार से बालकों को लगता है क्या? मार्गदर्शक के नाते जो-जो गुण हमारे में चाहिए उन गुणों के संवर्धन के लिए हमें प्रयासरत रहना चाहिए| अन्त: में शांति मन्त्र के साथ इस कार्यशाला का समापन हुआ