विद्या भारती भारत का सबसे बड़ा गैर सरकारी सहायता प्राप्त संगठन है। पूरे भारत में कई हजार विद्यालय विद्या भारती के निर्देशन में शिक्षा की ज्योति आलोकित किए हुए हैं। इनमें लाखों विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते हैं। यहां विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के विशेष प्रयास किए जाते हैं। भारत की लोकतान्त्रिक व्यवस्था में आस्था बनी रहे, उनके विकास की गति बढ़े, इसके लिए छात्र संगठन के माध्यम से विशेष प्रशिक्षण की व्यवस्था है। इस संगठन का नाम शिशु भारती व बाल भारती है।
यह बालकों का, बालकों के लिए, बालकों के द्वारा चलाया जाने वाला विद्यालय स्तरीय लोकतान्त्रिक संगठन है। इस संगठन का उद्देश्य बालक को एक अच्छा नागरिक व कुशल नेतृत्वकर्ता बनाना है। इसका गठन प्रतिवर्ष होता है। शिशु भारती का गठन चयन (मनोनयन) प्रक्रिया से और बाल भारती का गठन चुनाव प्रक्रिया से होता है।
चयन (मनोनयन) प्रक्रिया द्वारा गठित शिशु भारती कक्षा 1 से 8 तक के विद्यार्थियों में गतिविधियाँ आयोजित करता है। चयन (मनोनयन)प्रक्रिया से भारत की सामाजिक व्यवस्था से परिचय होता है। चुनाव प्रक्रिया में कक्षा 9 से 12 तक के विद्यार्थी भाग लेते हैं। इसमें भारत की चुनाव प्रक्रिया का परिचय हो जाता है।
दोनों ही प्रक्रियाओं के पदाधिकारी समान होते हैं। गठन के बाद कार्य व कार्यशैली भी समान होती है। गठित कार्यकारिणी में अध्यक्ष/ प्रधानमन्त्री सहित सात पदाधिकारी होते हैं। इनके नेतृत्व में 20 से 30 (विद्यालय की आवश्यकतानुसार) विभाग (प्रबंधन) व परिषदों (शैक्षणिक) के प्रमुख अनेक गतिविधियाँ करते हैं।
गठन की प्रक्रिया : प्रति वर्ष सत्र के प्रारम्भ होने पर अप्रैल मास के अंत या मई मास के प्रारम्भ में जब प्रवेश प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है और अध्ययन भी सुचारू रूप से शुरू हो जाता है तब शिशु भारती व बाल भारती का गठन किया जाता है।
प्रत्येक कक्षा से संख्या के अनुपात में या फिर सामान्यतः 4 या 5 छात्रों को उनकी सर्वांगीण विकसित हो रही प्रतिभा के आधार पर मनोनीत किया जाता है। इसके बाद संरक्षक आचार्य व प्रधानाचार्य की सहमति से शिशु भारती के लिए चयन(मनोनयन)व बाल भारती के लिए चुनाव करवाया जाता है।
इसमें से सात केंद्रीय पदाधिकारी होते हैं – शिशु भारती – अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, मंत्री, सहमंत्री, सेनापति, उपसेनापति, बाल पत्रकार(मनोनीत)। एवं बाल भारती में प्रधानमंत्री, उपप्रधानमंत्री, मंत्री, सहमंत्री, सेनापति, उपसेनापति, बाल पत्रकार(मनोनीत)।
कक्षाशः मनोनीत शेष छात्रों को लेकर विभाग व परिषदें बनाई जाती हैं। विद्यालय के स्तर व संख्या को ध्यान में रखते हुए विभाग व परिषदों की संख्या कम या ज्यादा हो सकती है। इसी के आधार पर विभाग व परिषद के प्रमुख व सह प्रमुख (यदि आवश्यकता हो तो) तय किए जाते हैं।
प्रमुख परिषदें – विज्ञान, तकनीकी व गणित (अलग-अलग भी हो सकती हैं), हिंदी भाषा, सामाजिक विज्ञान, कला, नैतिक व आध्यात्मिक, शारीरिक शिक्षा, योग शिक्षा, संगीत शिक्षा, संस्कृत भाषा, अंग्रेजी भाषा, अन्य भाषा परिषद आदि।
प्रमुख विभाग – वंदना, स्वच्छता व सज्जा, अनुशासन, खोया-पाया, अतिथि, बागवानी व पर्यावरण, चिकित्सा व स्वास्थ्य, वस्तु भंडार, पुस्तकालय व वाचनालय, भोजन व जलपान, सेवा शिक्षा विभाग (संस्कार केंद्र), शिशु/बाल सभा, छात्र न्यायालय, पूर्व छात्र, बाल बैंक, घोष विभाग, उत्सव-पर्व व जयंती विभाग।
उपरोक्त प्रक्रिया से गठित शिशु भारती व बाल भारती वर्ष भर अपने संरक्षक आचार्य के साथ प्राचार्य के मार्गदर्शन में अनेक विद्यालयीन गतिविधियों का सुचारू संचालन करती है। सत्र समाप्ति होने पर इस बाल संगठन का विसर्जन हो जाता है व नए सत्र में पुनः इसका गठन होता है।
सभी गतिविधियाँ सहमति व समन्वय से होती हैं। इसमें विपक्ष नहीं होता। सभी क्रियाकलापों का उद्देश्य विद्यार्थियों का सर्वांगीण एवं शिक्षणेत्तर विकास करना है। इसमें बाल पत्रकार, छात्र संसद व छात्र न्यायालय संगठन के प्रमुख आयाम हैं। इनसे विद्यार्थियों की संवाद, नियम कानून व न्यायपालिका में विद्यार्थी की रुचि व आस्था बढ़ती है। इस प्रकार 30-35 विद्यार्थियों के संगठन से सम्पूर्ण विद्यालय में उत्साहपूर्ण गतिविधियों से विद्यार्थियों का सहज विकास हो जाता है। विभिन्न विभागों व परिषदों में कक्षाशः विद्यार्थियों की सहभागिता निश्चित की जाती है। विद्यालय की कुल छात्र संख्या का 20% शिशु भारती व बाल भारती में सहभागी हो सकता है।
प्रधानाचार्य अथवा संरक्षक आचार्य की अध्यक्षता में संगठन की मासिक बैठकों का क्रम चलता है जिसमें गत मास की गतिविधियों की समीक्षा व आगामी क्रियाकलापों की रूपरेखा तैयार की जाती है।