
वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में बालिका की नैसर्गिक, मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक इस त्रियोचित गुणों का विकास नहीं हो पाता। हमारे परिवारों की धार्मिकता और आध्यात्मिकता महिला संस्कारों द्वारा ही सुरक्षित रह सकती है और भावी पीढ़ी को समृद्ध बना सकती है। भारतीयता में नारी मुक्ति आंदोलन जैसी कोई परिकल्पना नहीं है उसे देवी रूप मानकर सम्मान की दृष्टि से देखा गया है भविष्य की ग्रहणी और आज की बालिका को किशोरावस्था से ही कैरियर की पढ़ाई के साथ-साथ हस्तकला और ललित कला से अवश्य जोड़ना चाहिए उसे स्वाबलंबी बनने की ओर अग्रसर करना चाहिए यह विचार सुश्री रेखा चूड़ासम्मा बालिका शिक्षा प्रमुख अखिल भारतीय विद्या भारती शिक्षा संस्थान ने विद्या भारती हरियाणा द्वारा आयोजित प्रांतीय ई बालिका शिक्षा कार्यशाला (दिनांक 27 से 28 जुलाई) में कहे
उन्होंने यह भी कहा की शारीरिक से अधिक उसका मानसिक मनोबल बढ़ाना चाहिए उसे हीनता नहीं विशेषता का एहसास करवाना जरूरी है उसमें समर्पण भाव रहता है घर परिवार के लिए व्रत उपवास करना तुलसी पूजन रसोई घर में अन्नपूर्णा का दायित्व रहता है महिला के करणीय कार्यों से अगली पीढ़ी तक संस्कार पहुंचते हैं आज के परिदृश्य में तो पवित्र भोजन सफाई व्यवस्था की विशेष भूमिका है इसके वैज्ञानिक कारण समझने आवश्यक हैंA
श्रीमती कुसुम कौशल बालिका शिक्षा प्रमुख विद्या भारती उत्तर क्षेत्र ने अपने उद्बोधन में कहा कि 12 वर्ष से कम आयु के बच्चों का मन भाव प्रधान होता है दूसरे के सामने जल्दी नतमस्तक हो जाता है उनके जीवन में छोटे-छोटे प्रेरक प्रसंग और कहानियां अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं सहज भाव से वह बड़ों का सम्मान करते हुए उसे ग्रहण कर लेता है परंतु 12 वर्ष की आयु के बाद किशोरावस्था बुद्धि तर्क वितर्क करने लगती है और क्यों का उत्तर जाने बिना ग्रहण नहीं कर पाती। विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण स्वाभाविक होता है यही वह समय है जब बालिकाओं का मनोविज्ञान समझ कर उनकी भावनाओं का सम्मान रखते हुए मर्यादा और संस्कार पक्ष समझाना अति आवश्यक है समय-समय पर उनके मन में उठे सहज प्रश्नों का निवारण आवश्यक हैA इसके लिए हम नाटक, कहानी प्रेरक प्रसंग बातचीत का सहारा ले सकते हैं। सभी को बालिका शिक्षा निर्देशिका पढ़ने का आग्रह किया गया ताकि हम सभी का लाभ उठाएं और बालिकाओं का मार्गदर्शन उसके अनुसार करें वर्तमान स्थिति में बालिकाओं को छोटे-छोटे वीडियो क्लिप बनाकर भेजने के लिए कहा कबाड़ से जुगाड़ के लिए प्रेरित करने को कहा और स्वदेशी वस्तुओं के बारे में जानकारी और उनकी सूची बनाने को कहा रसोई घर में भी विदेशी सामान का बहिष्कार करना चाहिए उन्होंने कहा बालिका शिक्षा प्रमुख दीदी का दायित्व बनता है कि वह बालिकाओं को घरेलू कार्य सीखने के लिए प्रेरित करें ललित कलाओं की और सम्मोहित करें और उनके अंदर यह सब सीखते हुए गर्व की अनुभूति पैदा करें ।
श्रीमती निर्मल पॉपली जी ने पीपीटी के माध्यम से अपना विषय रखा कि किस प्रकार विद्यालय स्तर पर हम इसका क्रियान्वयन कर सकते हैं । हमें समय-समय पर बालिकाओं के साथ बैठकर बातचीत करनी चाहिए बाहर से भी काउंसलिंग के लिए बुलाया जा सकता है । बालिका शिक्षा दीदी बार-बार बदलनी नहीं चाहिए कार्यशाला में 44 विद्यालयों से लगभग 57 सहभागियों ने भाग लिया ।
