बालिका शिक्षा विषय पर विद्या भारती अनेक वर्षों से चिंतन कर रही है। 2008 में जयपुर में विशाल सम्मेलन का आयोजन हुआ जिसमें प्रमुख रूप से यही चर्चा रही कि बालिकाओं को ऐसा क्या प्रशिक्षण दिया जाए जिससे उसकी शिक्षा संपूर्णता की ओर बढ़े। विभिन्न स्थानों पर इस विषय को लेकर कार्य होता रहा लेकिन इसमें कोई एकरूपता नहीं थी। प्रश्न यह उठता है कि विशेष रुप से बालिका शिक्षा ही क्यों? देखने में आया कि परिवार टूटने की श्रंखला निरंतर बढ़ती चली जा रही है। परिवार से समाज, देश और राष्ट्र बनता है। अगर परिवार नामक इकाई सुदृढ़ नहीं तो हमारा राष्ट्र मजबूत होना संभव नहीं! नारी परिवार की मेरुदंड है जो अपने व्यक्तित्व से संतान परिवार और समाज को प्रभावित करती है।
स्वामी दयानंद जी ने कहा – एक बालक को शिक्षित करना एक व्यक्ति को शिक्षित करना है, लेकिन एक बालिका को शिक्षित करना कई परिवारों को शिक्षित करना है। मानव को सच्चे अर्थों में सुसंस्कृत बनाने का श्रेय नारी को जाता है क्योंकि भारतीय जीवन की मूल इकाई परिवार का केंद्र बिंदु ग्रहणी है और आज की बालिका कल की ग्रहणी है। अगर इस व्यवस्था को सुदृढ़ता प्रदान करनी है तो आज की बालिका को संयमी, धैर्यवान, बुद्धिमान और कठिन परिस्थितियों में निर्णय लेने लायक बनाना होगा। ऐसा नहीं हुआ तो देश की व्यवस्था चरमरा जाएगी।
विद्या भारती अखिल भारतीय संस्थान ने अपनी विशिष्ट शिक्षा पद्धति के क्रियान्वयन की दृष्टि से अपने केंद्रीय विषयों में बालिका शिक्षा को प्रमुखता से रखा है। जिसमें विभिन्न विषयों का समायोजन किया गया जैसे वेदों में नारी की भूमिका, संस्कारमय वातावरण, शारीरिक, मनोविज्ञान, हमारा परिवेश, रसोईघर एक औषधालय, वर्तमान चुनौतियां इत्यादि। सृष्टि का सृजन करने वाली मां चाहे तो देव बना दे चाहे तो दानव बना सकती है।
प्रेमचंद ने कहा है – पुरुष शस्त्र से काम लेता है और नारी कौशल से। महादेवी वर्मा ने कहा है – भारतीय संस्कृति के शाश्वत मूल्यों की रक्षा भारतीय नारी ने सर्वदा अनोखे ढंग से की है और आगे भी वही रक्षिता बनेगी। अगर इस आयु में उसे उचित मार्गदर्शन प्राप्त ना हो तो वह अच्छे बुरे की सीमा रेखा पहचाने बिना भ्रमित हो जाती है। समस्याओं का क्या है वह तो अनंत है उनसे टकराने की ऊर्जा प्रदान करनी है ताकि वह चुनौतियों को गले लगा कर लक्ष्य की ओर बढ़ सके और समर्पण भाव को कायम रख सके तथा उसकी पारिवारिक इकाई एक दूसरे के गुण-दोष, सुख-दुख, जय-पराजय सब एकजुट झेल जाए। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए पाठ्यक्रम की रूपरेखा तैयार हुई है। यह पाठ्यक्रम कक्षा तृतीय से 12वीं तक की बहनों के लिए चार चरणों में तैयार किया गया है।
कन्या भारती, मातृभारती, सरस्वती यात्रा, बालिका विकास, शिविर, बालिका शिक्षापरिषद, माता-पुत्री विचार गोष्ठी आदि बालिकाओं के जीवन व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन लाने के उपाय हैं जिनके द्वारा जब बालिका गृहस्थ जीवन में प्रवेश करें तो अगली पीढ़ी को देश के लिए श्रेष्ठ नागरिक के रूप में विकसित करें। घर परिवार और कार्यस्थल में सामंजस्य स्थापित कर सकें, जीजाबाई, रानी लक्ष्मीबाई और निवेदिता जैसी अनेक नारियों के गुणों को आगे बढ़ाते हुए आर्थिक दृष्टि से भी सक्षम हो और सहगामिनी बन पुरुष को पुरुषत्व प्रदान कर सकें।
विद्यालय स्तर पर बालिका कक्षा-कक्ष में माह में कम से कम दो बार बैठकर चर्चा की जाए। विद्यालय की विभिन्न गतिविधियों में उनकी सहभागिता रहे। विशेष पर्वों का आयोजन उनके द्वारा हो। बालिका शिक्षा के पाठ्यक्रम का समायोजन उनकी शैक्षिक शिक्षा के साथ हो। घरेलू कार्यों का वहन सक्षमता से कर सके। विभिन्न कार्यक्रमों में उनके द्वारा बजट तैयार किया जाए और भविष्य में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के सक्षम बनाया जाए, उनमें समर्पण और स्वाभिमान जागृत किया जाए।