प्रशिक्षण की कमी से ज्ञान धीरे-धीरे धूमिल होने लगता है: देशराज शर्मा

शिक्षा चिंतन की प्रक्रिया है शिक्षा चिंतन के द्वारा ही विस्तार प्राप्त करती है । पूर्व संचित ज्ञान में अभिवृद्धि ही बैठक व वर्गों का उद्देश्य है । जीव जगत में सर्वश्रेष्ठ प्राणी होने के कारण मनुष्य को ही सबसे अधिक प्रशिक्षण की आवश्यकता है । प्रशिक्षण की कमी से ज्ञान धीरे-धीरे धूमिल होने लगता है । यह विचार श्री देशराज शर्मा जी – महामंत्री विद्या भारती उत्तर क्षेत्र ने विद्या भारती हरियाणा द्वारा आयोजित प्रांतीय प्रशिक्षक कार्यशाला (7 से 10 जनवरी 2021) प्रान्त कार्यालय कुरुक्षेत्र में रखे ।

श्री रवि कुमार जी संगठन मंत्री विद्या भारती हरियाणा ने चर्चा करते हुए कहा कि शिक्षा का कार्य समाज को सत्य और धर्म के मार्ग पर प्रशस्त करना है। ज्ञान परंपरा को बढ़ाने का कार्य शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों का है। कक्षा-कक्ष में आचार्य विद्यार्थी में प्रवचन हो क्योंकि छात्र आचार्य का मानस पुत्र है अतः दोनों में आत्मिक संबंध बने। छात्र आचार्य परायण और आचार्य ज्ञान परायण व ज्ञान सेवा परायण होना चाहिए । उन्होंने कहा कि मनोविज्ञान एवं रुचि अभिरुचि को ध्यान में रखकर शिक्षण होना चाहिए।

श्री रवि कुमार जी ने में आगामी वर्ष में होने वाले वर्गों की जानकारी ली जैसे वर्गों का उद्देश्य, समय और स्थान निर्धारण करना,  समय सारिणी, प्रतिभागी संख्या पूर्वानुमान व्यवस्थाएं, कार्य विभाजन, पाठ्यक्रम का निर्धारण एवं रिसोर्स पर्सन की व्यवस्था आदि । सभी प्रतिभागियों ने छ: समूह में बटकर कर निम्न बिन्दुओं जैसे गति अवरुद्ध छात्र, पंचकोशीय विकास, कक्षा कक्ष प्रबंधन क्यों, हिंदुत्व, प्राथमिक कक्षाओं के विद्यार्थियों का आहार-विहार, वक्ता पर विषय आदि के बिन्दू बनाये।

श्री नारायण जी प्राचार्य गीता निकेतन आवसीय विद्यालय ने संस्कृत आधारभूत विषय पर अपने विचार रखते हुए कहा कि संस्कृत से बौद्धिक विकास होता है ।  संस्कृत से सात्विकता,निरभिमानिता,शुचिता, कठिनाई का सामना करने की शक्ति आती है । श्री राम कुमार जी प्रांतीय प्रशिक्षण प्रमुख ने संगीत आधारभूत विषय पर चर्चा की उन्होंने बताया कि समस्त क्रियाओं का आधार मन है इसलिए मन की एकाग्रता पर बल दिया जाए। मन की एकाग्रता से ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उपलब्धि स्तर को उन्नत किया जा सकता है । इसी प्रकार से श्री शेषपाल जी ने नैतिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा आधारभूत विषय पर अपने विचार रखते हुए कहा कि समाज जीवन में नैतिक मूल्यों के ह्रास के कारण मानव त्रासदी को दूर करने के लिए 1952 में विद्या भारती रुपी वैतरणी का प्रादुर्भाव हुआ जिसका विधिवत गठन 1977 में किया गया।जिसके अन्तर्गत शिक्षा को विशेष रुप से पढ़ाए जाने की व्यवस्था की गई। जिसमें पांच आधार भूत विषयों को स्थान दिया गया जिसमें नैतिक एवं आध्यात्मिक विषय का महत्वपूर्ण स्थान है।

श्री सुधीर कुमार जी प्राचार्य श्रीमद्भागवत गीता वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, नारायणगढ  ने ‘स्वाध्याय एवं प्रबोधन सुनकर बिन्दु लेखन’ विषय प्रतिभागियों को समझाया। इसमें प्रतिभागियों को एक का ऑडियो सुनाया गया जिसके आधार पर बिन्दू लेखन करने को कहा स्वाध्याय के विभिन्न माध्यमों पर चर्चा हुई जैसे :- स्व का अध्ययन, जीवन व्यवहार का प्रत्यक्ष अध्ययन, पुस्तक अध्ययन एवं संबंधित आदि। उन्होंने कहा कि बिन्दु लेखन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि निर्धारित विषय, बिन्दु लेखन की समग्रता में अवश्य स्पष्ट हो। उद्बोधन सुनने के पश्चात बिन्दु लेखन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि वक्ता द्वारा बताई गई बात को प्राथमिकता देना,  स्वयं कुछ जोड़ने व घटाने से बचना चाहिए। इस कार्यशाला में प्रान्त से 23 प्रतिभागियों ने भाग लिया।

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