विद्या भारती हरियाणा द्वारा 01 मार्च 2020 (रविवार) को भारती भवन में विद्वत गोष्ठी का आयोजन किया गया | अखिल भारतीय संस्कृति शिक्षा संस्थान के सहसचिव वासुदेव ने कहा कि अगर विद्यार्थियों को प्राथमिक कक्षा में महापुरषों की कहानियां सुनाई जाएं तो वो पूरी उम्र उन जैसा बनने का प्रयास करतें है | अच्छा शिक्षक व अभिभावक वही है जो बच्चे के मन को समझकर उसे पढ़ता है| कौशल यानी सीखने की कुशलता, सीखने के साधन जैसे होंगे, वैसी ही कुशलता होगी। सीखने के साधन भगवान ने सभी को दिए है। करण यानी साधन, बहीकरण, अंतःकरण। बही करण – ज्ञानेंद्रिया, कर्मेंद्रिया। अंतःकरण चतुष्टय- मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार। अंतःकरण सूक्ष्म यानि व्यापक है, जल सूक्ष्म है और उसकी व्यापकता है।
ज्ञानार्जन में करण की भूमिका। कर्मेंद्रिया क्रिया करती है। ज्ञानेंद्रिया अनुभव प्राप्त करती है। मन विचार करता है। बुद्धि सही-गलत को निश्चित करता है। अहंकार ही ज्ञाता है, अहंकार ही भोगता है। चित्त की भूमिका संस्कार के संग्रह में है।
हमें अंग्रेजी शिक्षा पद्धति से भारतीय शिक्षा पद्धति में आना पड़ेगा| ताकि बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सकें| विद्या भारती के विद्यालयों में मन, बुद्धि, अहंकारहीन, एवं चित पर आधारित शिक्षा देने का प्रयास किया जा रहा है| गुलशन ग्रोवर ने कहा अभिभावक अपने बच्चे की क्षमताओ को न देखकर उस पर बिना वजह अच्छे अंक लाने का दबाव बनाते हैं जिस कारण बच्चों के मन व् बुद्धि पर बुरा असर पड़ता है| विवेक भरद्वाज ने कहा कि शिक्षा की सफलता तब है जब वो बच्चों को अंहकारहीन बनाए| अध्यापकों को भी बच्चों के प्रश्नों से बचना नहीं चाहिए बल्कि अपने ज्ञान का विस्तार करना चाहिए| संगोष्ठी का संचालन डॉ. पंकज शर्मा ने किया| संगोष्ठी संयोजक डॉ. सीडीएम कौशल ने किया| इस अवसर पर रवि कुमार संगठन मंत्री जी उपस्थित रहे